Saturday, March 21, 2009

गीत / हम भी अंतर मन के स्वर को लिख पाते ...?

गीत

हम भी अंतर मन के स्वर को लिख पाते
शब्दों की परिधी में भाव समा जाते ॥

तेरी आंहें और दर्द लिखते अपने
लिखते हम फिर आज अनकहे कुछ सपने
मरुस्थली सी प्यास भी लिखते होटों की
लिखते फिर भी बहती गंगा नोटों की
आंतों की ऐंठन से तुम न घबराते
हम भी अंतर मन के स्वर को लिख पाते॥


तेरे योवन को भी हम चंदन लिखते
अपनी रग रग का भी हम क्रंदन लिखते
लिख देते हम कुसुम गुलाबी गालों को
फिर भी लिखते अपने मन छालों को
निचुड़े चेहरों पर खंजर आड़े आते हम भी अंतर मन के स्वर को लेख पाते ॥


पीड़ा के सागर में कलम डुबोये हैं
मन के घाव सदा आँखों से धोये हैं
नर्म अंगुलियों का कब तक स्पर्श लिखें
आओ अब इन हाथों का संघर्ष लिखें
लिखते ही मन की बात हाथ क्यों कंप जाते
हम भी अंतर मन के स्वर को लिख पाते ॥


डॉ.योगेन्द्र मणि

Friday, March 20, 2009

दुल्हा बिकाऊ है...? ? ?

दुल्हा बिकाऊ है ? ? ?


हाँ हम लड़के वाले हैं
यह क्या आपके पैरों में छाले हैं
शायद आप लड़की वाले हैं
बिल्कुल मत घबराइये
इधर चले आइये
मनपसंद दुल्हा यहाँ से ले जाइऐ

आई.ए.एस.या आर.ए.एस.चाहिऐ
मात्र15-20 लाख दे जाइऐ
नहीं चाहिऐ
डॉक्टर या इंजीनियर ले जाइऐ
आपको थोड़ी परेशानी तो होगी
पर लड़की का भाग्य खुल जाऐगा
खर्चा मात्र 12-15 हजार आऐगा

क्या कहा मामला जमा नहीं
कुछ कम दे दीजिऐ
हमारे पास वकील भी हैं
इन्हें ले लीजि

पसंद तो आया
मगर दाम नहीं भाया
कोई बात नहीं थोड़ा नीचे उतर जाते हैं
ये सरकारी दफ्तर के शाही बाबू हैं
हलाँकि बे काबू हैं
अपने अफसर के भी वश् में नहीं आते
लेकिन आप चिंता मत कीजिऐ
सब सीधे हो जाऐगें
इनके लिऐ मात्र हम 8हजार लगाऐगैं

यह क्या ,आप तो घबरागये
पसीने से नहा गये
थोड़ा कम दे दीजिऐ
फेक्ट्री का फिटर या आपरेटर ले लीजिऐ
इससे भी सस्ते
चौकीदार और चपरासी भी हैं

इस अध्यापक के विषय में
आपको क्या बताऐं
बुद्धी जीवी प्राणी है
महा ज्ञानी है
इसने न जाने कितने
ज़ाहिलों को इंसान बनाया
ऊँची से ऊँची कुर्सी तक पहुँचाया
लेकिन स्वयं अध्यापक ही रहता है
छात्रों का आक्रोश और उद्दण्डता तक
शालीनता सहता है
आप इसे आजमा कर तो देखिये
आपकी बेटी कितनी भी तीखी बाण
क्यों न हो
बेचारा सब सह लेगा


अच्छी तरह सोच लीजिऐ
यदि कोई पसंद न आये
तो इसे ले लीजिऐ
इसका दाम भी हम क्या बताऐं
जो उचित समझें दे दीजिऐ
वैसे यह बड़ा दयालू है
आप चाहें तो मुफ्त में
ले लीऐ

कवि या साहित्यकार आपको क्या भाऐगे
क्योंकि
इनके विषय में जब भी बात चलाई
जान के लाले पड़ गये
कई बार तो लोग
राशन-पानी लेकर
सीने पर चढ़ गये
हालाँकि बेचारा सीधा साधा
सस्ता जीव है
फिर भी सब कतराते हैं
मुफ्त में लेने से भी घबराते हैं

सांसद ,मंत्री या उनके बेटे
आपको क्या रास आयेगें
उनके बारे में सुनोगे
तो आपके होश ही उड जाऐगे ?
एक तो उनमें कुवारों का स्टॉक
वैसे ही कम है
और क्योंकि वे दहेज विरोधी
आंदोलन के सक्रीय सदस्य हैं
इसलिऐ
गिनने की कोई आवश्यकता नहीं
आँख बंद कर वजन के बराबर
चुपचाप दे जाइये
मनवांछित फल पाइऐ
अपने पूरे खानदान की गरीबी मिटाइऐ

कमाल है आपको कोई पसंद नही आया
यह तो स्टण्डर्ड रेट है
फिर भी नहीं भाया
तो क्या मुफ्त में दुल्हा चाहते हैं ?
आपको मालूम है यहाँ हर माल बिकाऊ है
टिकाऊ की कोई गारंटी नहीं
फिर भी काम चलाऊ है

लगता है देश का नौजवान
चंद सिक्कों के आगे नतमस्तक है
इसलिऐ देश की बालाओं
तुम्हारे
अंतरमन पर द्स्तक है
जागो अब तो जागो
छेड़ दो दहेज रूपी दानव के विरुद्ध संधर्ष
शायद तभी नोटों की खनक से
नपंसक होता नौजवान जागेगा
और दहिज रूपी दानव
हमेशा के लिऐ भागेगा........? ? ?

डॉ.योगेन्द्र मणि

Friday, March 13, 2009

गरीबी हताओ

गरीबी हटाओ

सावधान वे आ रहे हैं
फिर एक बार
आश्वासनों और नारों का पिटारा लेकर
इन्होंने गरीबी हटाओ का नारा लगाया
शत प्रतिशत पूरा कर दिखाया ।

ये अपनी गारीबी हटा चुके हैं
कई महा नगरों में
बंगले बनवा चुके हैं।
आप भी आगे आइये
अपना भविष्य इन्हें थमाइये ।

इनके हाथ मजबूत कीजिए
जिससे देश मजबूत होगा
देश की प्रगती में सहयोग कीजिए
आप भी अपनी गरीबी दूर कीजिए ॥

डॉ.योगेन्द्र मणि
गज़ल
साजिशों का दौर है न उन पे ऐतबार कर
इंसान तू इंसान बन इंसानियत से प्यार कर॥

मिट रही है भुखमरी गरीब को ही मार कर
सुन रहे हैं मुल्क में ज़म्हूरित है कारगर ॥

थाने में हुआ हर तरफ चोर गुंड़ों का बसर
सोचता हूँ मैं यहाँ कैसे होगी अब गुजर ॥

नौजवां तबका खड़ा है डिग्रियों के ढ़ेर पर
रोज़गारी में मगर न हुआ वो कारगर ॥

रोज़ ढ़ोता लाश कांधेपे वो खुद की ड़ाल कर
अब तलक महलों में बैठे वे बनें हैं बेखबर ॥

ड़ॉ.योगेन्द्र मणि

व्यंग्य कविता/हवाई नारे

हवाई नारे दीवार पर लिखा था
यहाँ थूकना मना है
एक सूटिड़-बूटिड़ पढ़े लिखे लगने वाले
श्रीमान ने पढ़ा-
और पान की जुगाली कर
लिखे हुऐ पर ही थूक दिया

हमने जागरुक नागरिक होने के नाते
उन्हें टोका,श्रीमान
आपने पढ़ा नहीं यहाँ थूकना मना है
वरना जुर्माना लगेगा
वह तपाक से बोला-
जुर्माना लगाऐगा कौन...
तेरा बाप.....?
वैसे भी तेरा पेट क्यों दुखता है
तू भी थूक.....!

उधर देखो दीवार पर लिखा है
लिखना माना है
यह आदेश मना करने वाले ने लिखा है
पूरा हिन्दुस्तान
इन्हीं नारों पर टिका है
आपका और हमारा वोट तक
हवाई नारों में बिका है.....?

डॉ.योगेन्द्र मणि

Wednesday, March 11, 2009

आरक्षण

आरक्षण

एक जमाना था
जब दीन हीन, अनुसूचित,पिछ्डा, कहलाने वाला
स्वयं को छिपाता था
जाति सूचक संबोधनों से कतराता था
अब जमाना बदल गया है
हर कोई दीन हीन ,अनुसूचित, पिछड़ा
गरीबी की बाउण्ड्रीवाल के पचास फिट नीचे
दबा हुआ कहलाना चाहता है
जातिगत आरक्षण का पट्टा
गले में लटकाना चाहता है
क्योंकि.....?
धवल वस्त्र धारी तथाकथित नेता रूपी जीव
अपनी कुर्सी के चारों पैरों पर चाहता है
गुड़ पर भिनभिनाती मक्खियों की तरह
चिपके रहने वाले वोटर

वोट का कटोरा लिऐ यह जीव
हर वोटर के हाथ में
आरक्षण का कटोरा थमाने पर अड़ा है
और वोटर
आरक्षण की भीख के लिऐ
सड़कों पर खड़ा है
कोई इन्हें समझाओ
भीख माँगना अपराध है
अब समय आ गया है
सुरसा सा मुँह फैलाऐ खड़े
आरक्षण रूपी दानव के अंत का

जो कभी धर्म के नाम पर
कभी जाति के नाम
कभी पिछड़े के नाम पर
तो कभी सवर्ण के नाम पर
तुम्हें एक दूसरे का खून बहाने के लिऐ
मजबूर करता है

और तुम बन जाते हो तमाशा
राजनैतिक हथकंड़ों का
लेकिन मेरे दोस्त अब जागो
कुर्सियों की जय जय कार में
कीडे मकोडों की तरह मत भागो
आरक्षण रूपी दानव का सर फोड़ो
आपस में
मन से मन के तारों को जोड़ो ॥



डॉ. योगेन्द्र मणि

Tuesday, March 10, 2009

होली मुबारक

रंगों की फुआर में यूँ ही रंगे रहो
बहु्दलीय सरकार से यूँ ही टंगे रहो
बुरान मानो आज किसी ठिठोली का
खुशियों भरा हो रंग हर बरस होली का

डॉ.योगेन्द्र मणि

Sunday, March 8, 2009

चित्र बोलते है......?
ये बेजुबान चित्र बोलते हैं
अपनी कलाई स्वयं खोलते हैं
इस बेजान से प्राणी को देखिये
जिसके चिथड़ों नुमा कपड़ों पर
लगे हैं विदेशी पैबन्द
यदि इन्हें हटा दिया जाय
तब स्पष्ट नजर आयेगा
एक मानव कंकाल.
जिसपर चिपकी सूखी मांस की पर्तें
यह सत्य, अहिंसा,गाँधीवाद,समाजवाद
और न जाने कितने वादों से बना
लोकतंत्र का लबादा ओढ़े
पंचशील के सिद्धान्तों की
लक्ष्मण रेखा के बीच
हाथ में गुट निर्पेक्षता की लाठी लिऐ
सर्व धर्म सम्पन्न शांत खड़ा
कभी कुछ नहीं खाता है
आश्वासनों से काम चलाता है
अपनों ने ही इसे खोखला कर दिया
पड़ोसी पैरों की जमीन तक झपट गये
लेकिन यह मुस्कराता रहा
अपना सब कुछ लुटाता रहा
आप सोचते होंगे
अजाब सर फिरा इंसान है
लेकिन मेरे दोस्त यह बड़ा महान है
कहते हैं इसी का नाम हिन्दुस्तान है
सबसे ऊपर--
आशीर्वाद देने की मुद्रा में
नेत्र बन्द किऐ दाहिना हाथ ऊपर उठाऐ
पद्मासन लगाऐ
चोटी से एडी तक श्वेत वस्त्र धारी
ऊँची सी कुर्सी से चिपका
बांऐ हाथ में कुर्सी का हत्था संभाले
जिसे आप देख रहे हैं
वह बड़ा विचित्र जीव है
यह राष्ट्र निर्माता है
सबका भाग्य विधाता है
प्रत्येक पाँच वर्ष में अवतार लेता है
जनता के घावों को
आश्वासनों से भर देता है
यह दिखता केवल इंसान है
यह महान ही नहीं बड़ा महान है
मंदिर में तो मात्र पत्थर है
लेकिन यह जीता जागता भगवान है
पुरातन इतिहास में
इसका उल्लेख कम ही मिल पाता है
नवीनतम संसकरणों में
यह नेता कहलाता है ॥

डॉ.योगेन्द्र मणि