Wednesday, May 13, 2009

रघुपतिराघव राजा राम
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रघुपति राघव राजा राम, करदे सबका काम तमाम
सरपंच,एम.एल.ए.या एम.पी कुछ तो मुझे बना भगवान ॥
एक बार दिलवादे कुर्सी ,फिर सबकी करवा दूँ कुर्की
मुझको भी रोजगार मिलेगा,तेरा कारोबार चलेगा
जो भी आता तेरी गाता, चूंस-चूंस जनता को खाता
नेताओं के भारे गॊदाम,काम करें न एक छदाम
उसने सबको दिया है धोका, मुझको भी तो दे दे मौका
सब आश्वासन तेरे नाम,रघुपति राघव राजा राम....॥
गाँधी तेरा लेकर नाम,खूब किया जग में बदनाम
रिश्वत खोरों का है मोल, सच बोलो तो बिस्तर गोल
घोटालों पर जाँच का ताला, कुर्सी तेरा खेल निराला
कुर्सी मैय्या कुर्सी बाप,मन मैल पर कुर्ता साफ
पूरे कर मेरे अरमान, रघुपति राघव राजा राम....॥
अंधेर नगरी चोपट राजा, अब तो बजा दे उनका बाजा
खाया अब तक जितना उसने ,पूरा नहीं दिलादे आधा
भूख गरीबी और कंगाली जैसे नेता जी की साली
भूखे भजन न होय गोपाला, तेरी फसल खा गया लाला
अब तो सुन लो श्री भगवान, रघुपति राघव राजा राम....॥

Saturday, May 9, 2009

कविता /मेरी माँ

मदर्स डे पर एक कविता

मेरी माँ

मेरी माँ ओ स्नेहमयी माँ
कैसे तेरा गुण-गान करूँ मैं
पौधा हूँ तेरी बगिया का
शत-शत तुझे प्रणाम करू मैं ॥
तूफानों से लडी हमेशा
हँस-हँस कर मेरे ही लिऐ
नो मास तक की थी तपस्या
तूनें माँ मेरे ही लिऐ
अपने रक्त का दूध बनाकर
सींचा था मेरे जीवन को
तेरे रक्त की बूँद-बूँद का
कैसे यहाँ बखान करूँ मैं
पौधा हूँ तेरी बगिया का.............॥
इन्द्रासन सम गोद तेरी है
अन्य सभी सुख झूँठे हैं
फीके जग के मधुर बोल
माँ तेरी बोल अनूठे हैं
अपनी चिन्ता छोड सदा ही
सवांरा था मेरे जीवन को
मुख से कुछ न बोला मैं
तू समझ गई मेरे मन को
तेरी तीव्र परख शक्ति का
कैसे यहाँ बखान करू मैं
पौध हूँ तेरी बगिया का..............॥
पैरों चलना सीखा ही था
डगमग करता चलता था
उल्टे-सीधे कदम धरा पर
पडे और मैं गिर जाता था
तेरे हृदय में जाने कैसा
कोलाहल सा मच जाता था
उठा मुझे तू ममतामयी
बाँहों में भर लेती थी
धूल पौछना छोड प्यार की
वर्षा सी कर देती थी
तेरी ममता की समता
जग में किससे आज करू मैं
पौधा हूँ तेरी बगिया का.................॥
धुँधली स्मृति जागृत होते ही
मेरा तन मन थर्राता है
देख तेरा अदभुत साहस
विस्मय में यह पड जाता है
भूखी रहती अगर कभी तू
मेरा पेट न खाली रहता
कैसी भी हो विपदा तुझपर
तेरा मुख कुछ भी न कहता
ओ सत्साहसनी,शक्तिमूर्ति
तेरी किससे तुलना करूँ मैं
पौधा हूँ तेरी..............................॥
ममता के आँचल के वे दिन
सुख के दिन थे
मेरे लिऐ बचपन के वे दिन
स्वर्णमयी दिन थे
आज याद बचपन आता
यौवन को सूना बतलाता
सब सामंजस, सब यश-अपयश
नाशवान है
अक्षय रहेगी कीर्ति तेरी
स्वार्थी जग में किन शब्दों से
तेरी महिमा बखान करूँ मैं
पौधा हूँ तेरी बगिया का माँ
शत-शत तुझे प्रणाम करूँ मैं ॥