Tuesday, September 15, 2009

काव्य प्रेमी/व्यंग्य

काव्य -प्रेमी /व्यंग्य

एक काव्य प्रेमी हमारे पास आये
बोले
बन्धु कोई कविता सुनाओ
उनके काव्य प्रेम को देख
कविता की प्रसव पीडा ने हमें आन सताया
हमने श्रंगार की प्रथम डोज पिलाने के चक्कर में
चन्द्रमुखी नायिका के
गदराये यौवन वाली रचना सुनाई
उन्होंने तुरन्त टांग अडाई
तुम कौनसी सदी के कवि हो भाई
ऐसी रचनाऐं दसवीं के कोर्स में आती हैं
छात्रों को मीठे सपनें दिखाती हैं
तुम भी मीठे सपने दिखाने लगे
गदराऐ यौवन की बाते बताने लगे

शायद तुमने नहीं देखी
दहेज की आग में झुलसती हुई नवयौवनाऐं
सूखी छाती से चिपके दुध-मुँहे बच्चे
बूढे माँ-बाप की खातिर
यौवन के आगमन से बेखबर
ओफिस में कलम धिसति युवतियां

उनका तैंवर देख
गाँधी के तीन बन्दर की कविता सुनाई
वे भन्नाऐ-

बोले-
लगता है तुम
बन्दरों की सभ्यता का
जीता जागता नमूना हो
वैसे भी गाँधी की कविता तुमने क्यों सुनाई
क्या सारे नेता मर गऐ
और गाँधीवाद तुम्हारे नाम कर गऐ
अभी तो देश में नोटों की राजनीति जिन्दा है
जिससे गाँधी की आत्मा तक शर्मिन्दा है
क्यों दाल भात में मूसल चन्द बने जाते हो
दूसरी कविता क्यों नहीं सुनाते हो ?

हमने कहा
आजाद ,भगत या सुभाष की कविता सुनाऐ
वे बोले-
आखिर आप चाहते क्या हैं
क्या हम भी शहीद हो जाऐ ?
यदि आजाद,भगत या सुभाष की कविता सुनाओगे
तो शान्ती भंग करने के आरोप में
अन्दर हो जाओगे

हम झल्लाऐ-
आखिर आप चाहते क्या हैं...?
आप कहें तो हम आत्म हत्या कर जाऐं..?
बोले कर लो देश का भला होगा
ऐसी कविताओं से न जाने अब तक
कितनों को छला होगा
सुनानी ही है

तो कौमी एकता के गीत गाओ
आतंकवाद मिटाने में स्वर मिलाओ
मंहगाई के साथ दौड लगाने के गुर बताओ
सरकारी सूत्रीय कार्यक्रमों में
दो-चार सूत्र अपने भी जोड जाओ
सस्ते टी.वी और मोबाइल के सपने जगाओ

हम बोले भय्याजी-
जिनकी आँतों पर ताले पडे हों
आँखों में आंसू के समन्दर भरे हों
उन्हें सुत्रों की चादर कब तक उढाओगे
कडी मेहनत के नाम पर
कब तक तडफाओगे
जिनके सर पर न छप्पर
न पैरों में जूती
उनको क्या भैय्याजी
मोबाइल और टी.वी खिलाओगे ...??


डॉ. योगेन्द्र मणि