Friday, March 13, 2009

गज़ल
साजिशों का दौर है न उन पे ऐतबार कर
इंसान तू इंसान बन इंसानियत से प्यार कर॥

मिट रही है भुखमरी गरीब को ही मार कर
सुन रहे हैं मुल्क में ज़म्हूरित है कारगर ॥

थाने में हुआ हर तरफ चोर गुंड़ों का बसर
सोचता हूँ मैं यहाँ कैसे होगी अब गुजर ॥

नौजवां तबका खड़ा है डिग्रियों के ढ़ेर पर
रोज़गारी में मगर न हुआ वो कारगर ॥

रोज़ ढ़ोता लाश कांधेपे वो खुद की ड़ाल कर
अब तलक महलों में बैठे वे बनें हैं बेखबर ॥

ड़ॉ.योगेन्द्र मणि

2 comments:

  1. Saheb
    Holi mubarak. Gazal bhut steek hai.sundr rachna ke liye aabhar.
    kiran

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  2. JANAB
    DILI MUBARAK, GAZAL BAHUT BADIYA LIKHA HAE.
    KULDIP SINGH RAJPUROHIT
    RAIPUR(C.G.)

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