Sunday, March 8, 2009

चित्र बोलते है......?
ये बेजुबान चित्र बोलते हैं
अपनी कलाई स्वयं खोलते हैं
इस बेजान से प्राणी को देखिये
जिसके चिथड़ों नुमा कपड़ों पर
लगे हैं विदेशी पैबन्द
यदि इन्हें हटा दिया जाय
तब स्पष्ट नजर आयेगा
एक मानव कंकाल.
जिसपर चिपकी सूखी मांस की पर्तें
यह सत्य, अहिंसा,गाँधीवाद,समाजवाद
और न जाने कितने वादों से बना
लोकतंत्र का लबादा ओढ़े
पंचशील के सिद्धान्तों की
लक्ष्मण रेखा के बीच
हाथ में गुट निर्पेक्षता की लाठी लिऐ
सर्व धर्म सम्पन्न शांत खड़ा
कभी कुछ नहीं खाता है
आश्वासनों से काम चलाता है
अपनों ने ही इसे खोखला कर दिया
पड़ोसी पैरों की जमीन तक झपट गये
लेकिन यह मुस्कराता रहा
अपना सब कुछ लुटाता रहा
आप सोचते होंगे
अजाब सर फिरा इंसान है
लेकिन मेरे दोस्त यह बड़ा महान है
कहते हैं इसी का नाम हिन्दुस्तान है
सबसे ऊपर--
आशीर्वाद देने की मुद्रा में
नेत्र बन्द किऐ दाहिना हाथ ऊपर उठाऐ
पद्मासन लगाऐ
चोटी से एडी तक श्वेत वस्त्र धारी
ऊँची सी कुर्सी से चिपका
बांऐ हाथ में कुर्सी का हत्था संभाले
जिसे आप देख रहे हैं
वह बड़ा विचित्र जीव है
यह राष्ट्र निर्माता है
सबका भाग्य विधाता है
प्रत्येक पाँच वर्ष में अवतार लेता है
जनता के घावों को
आश्वासनों से भर देता है
यह दिखता केवल इंसान है
यह महान ही नहीं बड़ा महान है
मंदिर में तो मात्र पत्थर है
लेकिन यह जीता जागता भगवान है
पुरातन इतिहास में
इसका उल्लेख कम ही मिल पाता है
नवीनतम संसकरणों में
यह नेता कहलाता है ॥

डॉ.योगेन्द्र मणि

6 comments:

  1. बहुत खूब आपकी कविता अच्छी लगी आपको होली की हार्दिक शुभकामनाएं।

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  2. आप को ढेर साडी बधाईयाँ

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  3. होली की हार्दिक् बधाईयां।
    सुंदर रचना के लिए शुभकामनाएं।
    भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
    लिखते रहि‌ए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
    कविता,गज़ल और शेर के लि‌ए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
    मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
    www.zindagilive08.blogspot.com
    आर्ट के लि‌ए देखें
    www.chitrasansar.blogspot.com

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  4. एक मानव कंकाल.
    जिसपर चिपकी सूखी मांस की पर्तें
    यह सत्य, अहिंसा,गाँधीवाद,समाजवाद
    wah bhai wah khuub satik bat kahi hai
    bahut hi sundar rachna hai..,hamari hardik subhkamnae sweekr kijiye..,sath mei der sari badhaiya.., holi mbarak.. mk

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