Wednesday, March 11, 2009

आरक्षण

आरक्षण

एक जमाना था
जब दीन हीन, अनुसूचित,पिछ्डा, कहलाने वाला
स्वयं को छिपाता था
जाति सूचक संबोधनों से कतराता था
अब जमाना बदल गया है
हर कोई दीन हीन ,अनुसूचित, पिछड़ा
गरीबी की बाउण्ड्रीवाल के पचास फिट नीचे
दबा हुआ कहलाना चाहता है
जातिगत आरक्षण का पट्टा
गले में लटकाना चाहता है
क्योंकि.....?
धवल वस्त्र धारी तथाकथित नेता रूपी जीव
अपनी कुर्सी के चारों पैरों पर चाहता है
गुड़ पर भिनभिनाती मक्खियों की तरह
चिपके रहने वाले वोटर

वोट का कटोरा लिऐ यह जीव
हर वोटर के हाथ में
आरक्षण का कटोरा थमाने पर अड़ा है
और वोटर
आरक्षण की भीख के लिऐ
सड़कों पर खड़ा है
कोई इन्हें समझाओ
भीख माँगना अपराध है
अब समय आ गया है
सुरसा सा मुँह फैलाऐ खड़े
आरक्षण रूपी दानव के अंत का

जो कभी धर्म के नाम पर
कभी जाति के नाम
कभी पिछड़े के नाम पर
तो कभी सवर्ण के नाम पर
तुम्हें एक दूसरे का खून बहाने के लिऐ
मजबूर करता है

और तुम बन जाते हो तमाशा
राजनैतिक हथकंड़ों का
लेकिन मेरे दोस्त अब जागो
कुर्सियों की जय जय कार में
कीडे मकोडों की तरह मत भागो
आरक्षण रूपी दानव का सर फोड़ो
आपस में
मन से मन के तारों को जोड़ो ॥



डॉ. योगेन्द्र मणि

1 comment:

  1. bahut khoob yogendra ji,samyik rachna, vidroh ke liye aavahan, hum aapke saath hain.

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