Saturday, March 21, 2009

गीत / हम भी अंतर मन के स्वर को लिख पाते ...?

गीत

हम भी अंतर मन के स्वर को लिख पाते
शब्दों की परिधी में भाव समा जाते ॥

तेरी आंहें और दर्द लिखते अपने
लिखते हम फिर आज अनकहे कुछ सपने
मरुस्थली सी प्यास भी लिखते होटों की
लिखते फिर भी बहती गंगा नोटों की
आंतों की ऐंठन से तुम न घबराते
हम भी अंतर मन के स्वर को लिख पाते॥


तेरे योवन को भी हम चंदन लिखते
अपनी रग रग का भी हम क्रंदन लिखते
लिख देते हम कुसुम गुलाबी गालों को
फिर भी लिखते अपने मन छालों को
निचुड़े चेहरों पर खंजर आड़े आते हम भी अंतर मन के स्वर को लेख पाते ॥


पीड़ा के सागर में कलम डुबोये हैं
मन के घाव सदा आँखों से धोये हैं
नर्म अंगुलियों का कब तक स्पर्श लिखें
आओ अब इन हाथों का संघर्ष लिखें
लिखते ही मन की बात हाथ क्यों कंप जाते
हम भी अंतर मन के स्वर को लिख पाते ॥


डॉ.योगेन्द्र मणि

2 comments:

  1. bahut sunder yogendra ji

    तेरे योवन को भी हम चंदन लिखते
    अपनी रग रग का भी हम क्रंदन लिखते
    लिख देते हम कुसुम गुलाबी गालों को
    फिर भी लिखते अपने मन छालों को
    निचुड़े चेहरों पर खंजर आड़े आते हम भी अंतर मन के स्वर को लेख पाते ॥
    bahut khoob, badhai , kaushik ji agar lal, hare ke sthan par white colour kar den to shayad zyada achha lagega. dhanyawaad.

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  2. बहुत सुंदर लिखा है ... बहुत बहुत बधाई।

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