Friday, November 27, 2009
मैं भी पी लूँ
मैं भी पी लूँ
_____________
वे पीते हैं , मैं भी पी लूँ
सोचा था ऐसे ही जी लूँ
मेरी जान की दुश्मन दुनिया
यूँ ही कब जीने देती है
चुपचाप कहाँ पीने देती है...?
प्याले से कोई मदिरालय में
कोई पीता देवालय में
ज्ञान की सरिता बहाने वाला
देखो पीता विद्यालय में
मंत्री मंत्रालय में पीता
कोई पीता सचिवालय में
चपरासी बाहर ही पीता
अफसर पीता कार्यालय में
सेठ चोर साहूकार दरोगा
नैनों ही नैनों से पीते
अबला की योवन रस गगरी
पीते देखे वैशालयों में
लेकिन मैनें भी पीना चाहा
नये सिरे से जीन चाहा
तुम बोल उठे कि मैं पीता हूँ
तुम सा ही जीवन जीता हूँ
रक्त रूप योवन और मदिरा
तुम पीते मैं कब पीता हूँ
जब भी हुआ विवाद
सदा ही तुम जीते मैं कब जीता हूँ
अपनी ही सूनी आँखों के
केवल अश्रु नीर पीता हूँ
खुशियों की छितराई गुदडी
गम की सूंई से सीता हूँ
सोचा था ऐसे ही जी लूँ
वे पीते हैं मैं भी पी लूँ....॥
डॉ. योगेन्द्र मणि
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वे पीते हैं , मैं भी पी लूँ
सोचा था ऐसे ही जी लूँ
मेरी जान की दुश्मन दुनिया
यूँ ही कब जीने देती है
चुपचाप कहाँ पीने देती है...?
प्याले से कोई मदिरालय में
कोई पीता देवालय में
ज्ञान की सरिता बहाने वाला
देखो पीता विद्यालय में
मंत्री मंत्रालय में पीता
कोई पीता सचिवालय में
चपरासी बाहर ही पीता
अफसर पीता कार्यालय में
सेठ चोर साहूकार दरोगा
नैनों ही नैनों से पीते
अबला की योवन रस गगरी
पीते देखे वैशालयों में
लेकिन मैनें भी पीना चाहा
नये सिरे से जीन चाहा
तुम बोल उठे कि मैं पीता हूँ
तुम सा ही जीवन जीता हूँ
रक्त रूप योवन और मदिरा
तुम पीते मैं कब पीता हूँ
जब भी हुआ विवाद
सदा ही तुम जीते मैं कब जीता हूँ
अपनी ही सूनी आँखों के
केवल अश्रु नीर पीता हूँ
खुशियों की छितराई गुदडी
गम की सूंई से सीता हूँ
सोचा था ऐसे ही जी लूँ
वे पीते हैं मैं भी पी लूँ....॥
डॉ. योगेन्द्र मणि
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रक्त रूप योवन और मदिरा
ReplyDeleteतुम पीते मैं कब पीता हूँ
जब भी हुआ विवाद
सदा ही तुम जीते मैं कब जीता हूँ
अपनी ही सूनी आँखों के
केवल अश्रु नीर पीता हूँ
खुशियों की छितराई गुदडी
गम की सूंई से सीता हूँ
बहुत सुन्दर जनाव, बहुत सुन्दर ढेरो बदियाँ देना चाहूँगा इस सुन्दर रचना के लिए आपको !
क्षमा करे, बधाईयाँ के जगह बदिया टंकित हो गया
ReplyDeleteअपनी ही सूनी आँखों के
ReplyDeleteकेवल अश्रु नीर पीता हूँ
खुशियों की छितराई गुदडी
गम की सूंई से सीता हूँ
अद्भुत रचना - बेहतरीन
बहुत अच्छी रचना है ये
ReplyDeleteअच्छी लगी
रक्त रूप योवन और मदिरा
ReplyDeleteतुम पीते मैं कब पीता हूँ
जब भी हुआ विवाद
सदा ही तुम जीते मैं कब जीता हूँ
अपनी ही सूनी आँखों के
केवल अश्रु नीर पीता हूँ
खुशियों की छितराई गुदडी
गम की सूंई से सीता हूँ
bahut sundr yogendra ji, bahut sahi socha aapne aur hamen bhi chhakkar pilaai, purn trapt. badhaai.
बहुत ही बिंदास रचना क्या बात है . बधाई
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