Friday, December 4, 2009
जाने क्यों आज हम खलने लगे हैं....
जाने क्यों आज हम खलने लगे हैं
अब वो मुँह फेर कर चलने लगे हैं।
उनसे शिकवा भी क्या करें यारों
साँप आस्तीन में पलने लगें हैं ।
जब से सच को ही सच कहा हमनें
मूँग छाती पे वो दलने लगे हैं ।
ऊँची कुर्सी का कैसा जादू है
रिश्ते सब बर्फ से गलने लगे हैं ।
दूध से गर जले हों चर्चा करें
अब तो वे छाछ से जलने लगे हैं ॥
डॉ. योगेन्द्र मणि
अब वो मुँह फेर कर चलने लगे हैं।
उनसे शिकवा भी क्या करें यारों
साँप आस्तीन में पलने लगें हैं ।
जब से सच को ही सच कहा हमनें
मूँग छाती पे वो दलने लगे हैं ।
ऊँची कुर्सी का कैसा जादू है
रिश्ते सब बर्फ से गलने लगे हैं ।
दूध से गर जले हों चर्चा करें
अब तो वे छाछ से जलने लगे हैं ॥
डॉ. योगेन्द्र मणि
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उनसे शिकवा भी क्या करें यारों
ReplyDeleteसाँप आस्तीन में पलने लगें हैं ।
जब से सच को ही सच कहा हमनें
मूँग छाती पे वो दलने लगे हैं ।
बहुत खूब शुभकामनायें
ऊँची कुर्सी का कैसा जादू है
ReplyDeleteरिश्ते सब बर्फ से गलने लगे हैं ।
bahut umda hai yogendra ji badhaai.
सुंदर रचना!
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