Thursday, April 23, 2009

आजादी की रेल
आजदी की देखो रेल धक्का - मुक्की पेलम - पेल
उनकी तो हर रोज दिवाली तेरे घर में बीता तेल।
आतंकवाद का रिसता फोड़ा देखो अब नासूर बना
मेहनतकश की झोंपड़ियों से अभी उजाला दूर घना
भ्रष्टाचार की फसल बो रहे देखो ये सरकारी अफसर
काट -बांट घर ले जाते हैं राजनीति छुट्भैय्ये वर्कर
राजनीति की चालें झेल आजादी की देखो रेल........॥


मंदिर मस्जिद मसला गाओ भूख गरीबी से तर जाओ
राम रहीम के लहू से भीगे बन्देमातरम्‌ मिलकर गाओ
नागफणी की बाढ़ लगी है शुद्ध हवा आयात कराओ
आश्वासन ही मूल मंत्र हो काम न एक छदाम कराओ
राम कृष्ण कुर्सी का खेल आजादी की देखो रेल..............॥


घोटालों पर घोटाला उस पर आयोगों का ताला
बोफोर्स तोप पर जंग लगी हर्षद ने बम चला डाला
आयोगों पर हैं आयोग अजब लगा देखो यह रोग
सत्ता तो अपनी रखैल है जितना चाहे उतना भोग
जाँच हो गई सारी फेल आजादी की देखो रेल........॥


जाग रे भैय्या उसे जगा कदम बढ़ा और आगे आ
क्रान्ती बीज खेतों में बो दे तभी बहेगी शुद्ध हवा
अंधकर का तोड़ो जाल हाथों में ले आज मशाल
गद्दारों के डाल नकेल सरपट दौडेगी फिर रेल
पाप ये उनके अब मत झेल आजादी की ..............॥


डॉ.योगेन्द्र मणि

1 comment:

  1. बहुत ही सुंदर यथार्थ काव्य रचना के लिए बधाई!

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